बगावत
जैसे तुम्हारे लिए,
लिए गए गुलाबों का कागजों के बीच मर जाना
मासूमियत है शायद लेकिन
महसूसी के दायरों से महरूम
धुनों का धुनों में ही खो जाना
थिरकते कदमों से नापसंदगी हो जाना
तुमने तो कहा था
मेरी कलाईयों से अब कभी बगावत नहीं होगी
लेकिन यहाँ तो
रूहों के भी कत्ले-आम हो रहे हैं
क्या यही है, तुम्हारी करीबी की सज़ा-ए-मौत?
क्या मेरी पलकों का छलक जाना ही
तुम्हारे लिए जश्न है?
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