और आधे तुम…..
मुझे लिखना है !
"पर क्यों लिखना है?"
तुम्हारे लिए नहीं,
खुद के लिए लिखना है
बेबाक लिखना है
बेखौफ लिखना है
"क्या लिखोगी?"
क्यों, तुम्हे पता है परखच्चे उड़ाना किसे कहते है?
"पर वो जो बेफिजूल हुआ ना फिर?"
"इतने वक्त के तकाजे अदा कर पाओगी?"
शायद, पर फिर जब मेरी लाश पर लंबे-लंबे कसीदे पढ़े जाएँगे तो अनकहे लफ्जो के झूठे आशियाने तो नहीं बनाएगा कोई…
"तुम हमेशा ऐसी बाते क्यों करती हो?"
क्यों, देखो मेरी अंगुलियाँ….
तुम्हे क्यों लगता है कि मैं सिर्फ वैसी ही बाते करूँगी जैसी तुम्हे पसंद हो
क्या मेरी अंगुलियों में लगी स्याही इस बात का सबूत नहीं कि जब तुम्हे देखती हूँ तो खून लिखती हूँ
"क्या फिर मुझे तुमसे डरना चाहिए?"
बेशक, माँ कहती है सबसे डरावनी वहीं साँस होती है जिसके सहारे से लिखा जाता है
वक्त भी बेहोश रहता है उस घड़ी में
"शायद से समझा,
पर ये बताओ फिर उन ढेर सारे कागजों का क्या करोगी जो तुम लिखोगी?"
क्यों, वही तो मेरी ज़िंदगी की आहुति बनेंगे।
आधे मैं जला दूँगी, और आधे तुम।
Comments
Post a Comment