मेरा मुझसे ये कैसा संवाद है?

तुम चीज़ें समेटती क्यों नहीं?

पहला विषय तो यह है कि महज़ "चीज़े" मात्र कहकर सब कुछ यूं दरकिनार कर देना बहुत ही संवेदनशील अवहेलना है, मेरे पूरे प्राणिमात्र वजूद की जो तुम्हारे बगैर भी शायद जिंदा है कहीं। और अंतिम यह कि कैसे समेटूँ? अधूरा ज्ञान? अधूरे वक्त के तकाज़े? अधूरे भावविहीन अलंकृत भाव? शायद एक दिन अगर मेरे वजूद की बोली लगा सको कभी, तो सब अपने आप ही पूरा हो जाएगा। 

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