मर्यादा

ये मर्यादा के झमेले 
बड़े ही नाचीज़ होते हैं
बेवफा होकर भी
यूँ खफ़ा दे जाते हैं
कि बाकी रहकर भी
नाकाफ़ी रह जाते हैं


इल्ज़ामातों की कड़ियाँ
नन्हे हाथों का सबब 
बन जाती है
कि बस हथकड़ियाँ
ही रह जाती है

टूटे हुए जिस्म
से जब लहू रिसता है,
तो पसीजे हुए दिल 
की खैरियत कौन पूछता है?

वो छूटा हुआ 
वो गुमनाम, अधूरा-सा
तूफ़ां मुझमें जब उमड़ता है
तो मैं, मुझमें, मुझसे
यूँ जुदा हो जाती हूँ
कि तुम्हारे सूखे हुए गुलाबों के
चिथड़े बिखरे पाती हूँ

पर बेचारे मेरे इश्क़ की यही रज़ा है,
इसलिए शायद उनमें खुद को नहीं
ढूढ़ पाती हूँ 

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