सिकुड़ते ज़मीर

क्या तुम्हारा सिकुड़ा हुआ ज़मीर
तुम्हे तुम्हारे होने का हवाला देता है?

जब तुम तुम्हारी उन सिकुड़ी हुई आँखों से
झूठ बोलते हो, 
तो क्या तुम्हारा गिरेबां 
उस ओस की बूँद को यूँ
इक पल में इनकार कर देता है?

या शायद ये जमीनें भी तुम्हारे उस
सिकुड़े हुए होठ की तरह अब इस कदर सिकुड़ चुकी हैं
कि ये बोलती तो हैं,
पर सिर्फ बोलती हैं !


हाँ, मैं सुन पाती हूँ
मैंने सुना है
मैं सुनती हूँ
हर रोज़ !

वो सिकुड़ा हुआ कागज़
जिसमें तुमने तुम्हारे 
ज़मीर को लिखा था,
उस सिकुड़े हुए फूल के साथ

जो तुम अब बेचना चाहते हो
अपनी उन्हीं सिकुड़ी हुई अँगुलियों से
जो पानी से सिर्फ इसलिए नफ़रत करती हैं
क्योंकि वे सिकुड़ जाती हैं।

Comments

  1. हाहा हाहा हाहा हाहा... बहुत खूब... सब कुछ सिकुड़ गया है आज के दौर में..भाव, संवेदनाएँ,रिश्ते..

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    1. जी हाँ, शुक्रिया!

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