पुरानी जिल्द में दबे वो पुराने पन्ने


मैं तुमसे बहुत कुछ कहना चाहती हूँ
पर शायद तुम इस दौर से गुज़र चुके हो
इसलिए मेरी बातें उन पुराने पन्नों की तरह कहीं खो जाती है
जो पढ़े जा चुके है

या फिर तुम्हारी उस टूटी हुई अलमारी में
इतने पन्ने है कि अब मेरा एक और भी शुमार हो जाए
तो कोई फर्क नहीं पड़ता
और तुम उसे महज एक कागज़ समझकर अनदेखा कर देते हो

मगर सच कहूं तो मुझे अब डर लगता है
कि कहीं तुम मेरे उन करीने से लिखे गए लब्जों को
चिन्दी चिन्दी कर फेंक ना दो

क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो जो
थोड़ा बहुत सम्बल मैं खुद को आईने में देखने को जुटा पाई हूँ
वो भी टूट कर बिखर जाएगा
शेष रहेगा तो बस वो आईना जो खुद ही टूटा हुआ है

पर फिर सोचती हूँ तुमसे उन पलों की दुहाई क्यों माँगू
जो तुम मुझे नहीं दे सकते?

पर जो गहरे निशान मेरी रुह में तुम्हारे दिए गए उन दर्दीले पलों से है
वो मेरे बदन के आंचल को अब इतना मैला कर उठे है कि
उसे फैलाकर भीख मांगना भी गवारा नहीं है!


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